Sunday, September 14, 2014

तोहमतें

ये तोहमतें न जाने कब जहां छोड़ेंगी,
यादों का वो खंडहर मकां छोड़ेंगी,
साफ दिखती है सूरत मेरे वजूद की लेकिन,
ये न दिखाने को बाकी निशां छोड़ेंगी।।
ये तोहमतें न जानें...
सबको बनावटी मुस्कुराहटों की चाहतें यहां,
पेशानी के बल भी नहीं सुहाते यहां,
घुटनों पे आकर नहीं बदलते मुकद्दर,
ये खुशामदी की आदतें कहीं का न छोड़ेंगी।।
ये तोहमतें न जानें...
साफगोई की बातें नामुराद हो जैसे,
भरी महफिल में भी हम बर्बाद हों जैसे,
अब दामन छुड़ाने को जी चाहता है,
खुदा हाफिज भी कहिए पर जां न छोड़ेंगी।।
ये तोहमतें न जानें...
हंसते मुखौटों से डर लगने लगा है,
सच का भी चेहरा झुलसने लगा है,
वक्त रहते बदल जाए सोहबत तो अच्छा,
ये बे-गैरत करतूतें राजदां न छोड़ेंगी।।
ये तोहमतें न जानें...
यूं तो मोहब्बत की बातें करते बहुत हो,
पर मोहब्बत लुटाने से डरते बहुत हो,
तेरे बे-कफन फिकरों से बरसती है आतिश,
जिंदगी में ये फितरतें हमजुबां न छोड़ेंगी।।
ये तोहमतें न जानें...

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