Sunday, January 12, 2020

अकेला

भीड़ बनकर मत जियो तुम
भीड़ बनकर मत मरो तुम
आए जीवन में अकेले
छोड़कर सारे झमेले
अब अकेले ही चलो तुम

मत करो परवाह सबकी
फूल सी गर राह उनकी
तुम चुनो कांटों का रस्ता
मुश्किलों से हो वाबस्ता
अब अकेले ही चलो तुम

मोड़ आएंगे अंधेरे
शत्रु चारों ओर घेरे
इन सभी से पार पाकर
आस की इक लौ जलाकर
अब अकेले ही चलो तुम

सोच को आजाद रखो
ऊंची हर परवाज़ रखो
बेड़ियों को काट डालो
रूढ़ियों को छांट डालो
अब अकेले ही चलो तुम

भीड़ तो गुमराह करती
जिंदगी आगाह करती
लो सबक कुछ जिंदगी से
राह खोजो बंदगी से
अब अकेले ही चलो तुम

अंगुलियों का नाच छोड़ो
बीते कल की बात छोड़ो
है बहुत लंबा सफर यह
है बहुत मुश्किल डगर यह
अब अकेले ही चलो तुम...

Thursday, January 2, 2020

आवाज़ें

कितनी आवाज़ दबाओगे
कितनी परवाज़ दबाओगे
हम और ज़ोर से बोलेंगे
तुम जितना हमें डराओगे
कितनी आवाज़...

जब-जब भी डराया है तुमने
जब-जब भी दबाया है तुमने
हैं सबक तुम्हें कुछ याद नहीं
आखिर में मुंह की खाओगे
कितनी आवाज़...

मंदिर मस्जिद में बांट दिया
सदियों का रिश्ता काट दिया
अब राम और अल्लाह करते हो
ऊपर क्या मुंह दिखलाओगे
कितनी आवाज़...

जाहिल सी बातें करते हो
बस लट्ठ घुमाते चलते हो
जां हाथ पे लेकर निकले हैं
तुम क्या हम से टकराओगे
कितनी आवाज़...

गुलशन ये बना कुर्बानी से
रंगों से भरी जवानी से
मिट्टी में मिला है खूं सबका
यह रंग मिटा ना पाओगे
कितनी आवाज़...