Thursday, November 26, 2020

मुंबई हमला (26/11)

बुझ गए चिराग जिनके
उनके दिल से पूछिए
छोड़िए नेता का भाषण
अपने दिल से पूछिए
जब चली थीं गोलियां
तो किसका सीना था वहां
किसकी उजड़ी मांग थी
ये हुक्मरां से पूछिए
कौन ऐसा बाप था
कंधे पे जिसके लाश थी
कैसे रोके थे ये आंसू
मां के दिल से पूछिए
चेहरे पे कितने ज़ख्म थे
हाथों में कितना था लहू
क्या रंग राखी था उस दिन
ये बहन से पूछिए
खामोश थीं किलकारियां
आंगन भी कुछ गुमसुम सा था
गूंजी थीं किसकी सिसकियां
बेटी के दिल से पूछिए।

प्रेम

दिल किसी का न दुखाए
बस वही तो प्रेम है
रोते चेहरे को हंसाए
बस वही तो प्रेम है
तल्खियां बढ़ जाएं जब
दो दिलों के दरमियां
गीत कोई गुनगुनाए
बस वही तो प्रेम है
जब कभी उड़ने लगो तुम
बेवजह आकाश में
पैर धरती पर टिकाए
बस वही तो प्रेम है
ज़िंदगी में भूल कर
हो जाए गर जो भूल तो
भूले को रस्ता दिखाए
बस वही तो प्रेम है
प्रेम में न सरहदें
प्रेम में न बंदिशें
उन्मुक्त सा उड़ता जो जाए
बस वही तो प्रेम है
प्यार की फसलों पे जब
हों ज़हर की बारिशें
गुल मोहब्बत के खिलाए
बस वही तो प्रेम है...

Friday, November 13, 2020

दौर

ये गिरावट का दौर है
भाषा गिर रही
शालीनता नहीं, फूहड़ता का दौर है
संवेदनाएं शून्य हैं
भावुकता नहीं, क्रूरता का दौर है
बौद्धिकता का है पतन
ज्ञान नहीं, अभिमान का दौर है
अभिव्यक्ति खतरे में
बोलने नहीं, डरने का दौर है
सत्य है संकट में
झूठ पर इतराने का दौर है
संस्कार गिर रहे
अदब नहीं, बदज़ुबानी का दौर है
विवेक क्षीण हो रहा
तर्क नहीं, कुतर्क का दौर है
हर दौर गुज़रा है
ये भी गुज़र जाएगा
कहेंगे लोग, इक वो भी दौर था
इक ये भी दौर है

मग़रूर

वो शख़्स जो मग़रूर है
वो इक नशे में चूर है
बात करता है फ़लक की
पर जमीं से दूर है
इक रंग में रंगने चला
सिर पे चढ़ा ये फ़ितूर है
ज़ुबां पे नफ़रत का ज़हर
दुनिया कहे ये शऊर है
झूठ पर वो झूठ बोले
सच यही मशहूर है
हाथ डूबे हैं लहू में
कुछ न कुछ तो कसूर है
न ख़ुदा का खौफ़ खाए
इतना उसमें ग़ुरूर है
वो शख़्स जो मग़रूर है...