Monday, May 23, 2022

भीड़तंत्र

भीड़ का न्याय
तराजू से नहीं 
तलवार से होता है
भीड़ बनती है 
भीड़ बनाई जाती है
गढ़ी जाती है
इसे भेड़ बनाकर 
सिर झुका कर 
चलाना ही तंत्र है
भीड़ सवाल नहीं करती
यह शोर करती है 
शोर में दब जाते हैं 
सवाल भी, जवाब भी
यह जब तलवार लेकर
चलती है सड़कों पर
बदहवास लाश सी लगती है
भीड़ सोचती नहीं
बस बढ़ती चली जाती है
अनजान मंजिल की ओर
छद्म से रची हुई दुनिया की तरफ
यह नहीं जानती
इस में कितनी ताकत है
कितनी हिम्मत है
दुनिया बदलने की
लेकिन यह भेड़ बनकर
बढ़ती रहती है लक्ष्यहीन
और इक दिन 
अंधे कुएं में गिरकर 
खामोश हो जाती है
सदा के लिए...

ख़ामोशी

शोर मचाती ख़ामोशी
रोज़ डराती सरगोशी
टूटेगी जाने किस दिन
यह वहशत की मदहोशी
ज़हर बिछी इन सड़कों पर
कब तक यूं चल पाओगे
तलवारों के साए में
किस-किस की जान बचाओगे
इंसां को इंसां न दिखे
छाई कैसी बेहोशी
शोर मचाती ख़ामोशी

Tuesday, May 10, 2022

नफ़रत के सौदागर

सुनो! नफ़रत के सौदागरो
कान खोलकर सुनो 
हवा-पानी में जो घोला है ज़हर तुमने
इक दिन तुम्हारे ही बच्चों का दम घोंटेगा
उस दिन कुछ नहीं होगा तुम्हारे पास 
सिवा इस नफ़रत के, वहशत के 
वह दिन बहुत भयानक होगा
तुम घुटनों के बल झुक कर
रहम की भीख मांग रहे होंगे 
और काल तुम्हें लौटा रहा होगा 
तुम्हारी ही फैलाई नफ़रत 
वह दिन बहुत भयानक होगा 
सुनो! नफ़रत के सौदागरो
कान खोलकर सुनो।।