Monday, December 6, 2021
दुनिया
Sunday, November 21, 2021
जय हो
Monday, September 13, 2021
उम्मीद
अंधियारे की ओट में छिपकर
आज उजाला पूछ रहा है
रात ये इतनी काली क्यों है
क्यों गहरे हैं इतने साए
सन्नाटों में खौफ़ भरा क्यों
ख़ामोशी बेचैन सी क्यों है
सांसों में क्यों भरी घुटन सी
आंखों में है अजब जलन सी
रंग-बिरंगी इन सड़कों पर
मरघट सी वीरानी क्यों है
क्यों गुम है महफ़िल की रौनक
क्यों साज़ों पर पहरा है
पायल-घुंघरू की खन-खन में
सुरों की हेरा-फेरी क्यों है
भवें तनीं हैं, तना है सीना
ज़ुबां पे तल्ख़ी, नज़र में नफ़रत
मुट्ठी कसी-कसी सी क्यों है
घनी हताशा सबको घेरे
आशा पर किस्मत के फ़ेरे
पाप-पुण्य और झूठ-सत्य में
झूठ का पलड़ा भारी क्यों है
मंदिर-मस्जिद और गिरजों में
दरगाहों और गुरु घरों में
शांत प्रार्थना पूछ रही है
जहन में इतनी वहशत क्यों है
इन पश्नों के अंतर्तम में
रौशन है उम्मीद का सूरज
फ़ेर समय का बहुत प्रबल है
अंधियारे की ओट से उगकर
इक दिन पूछेगा उजियारा
झूठ पे तू शर्मिंदा क्यों है
झूठ पे तू शर्मिंदा क्यों है...
Saturday, July 10, 2021
राह-2
बहुत मुश्किल है
कोई राह चुनना
उससे भी मुश्किल
उस पर चलने की
हिम्मत जुटाना
पहला कदम बढ़ाना
बिना रुके बढ़ते जाना
न थकना, न पलटना
न झुकना, न लड़खड़ाना
अनजान मंज़िल की ओर
होकर बेपरवाह
आवारा झोंके की तरह
बहते चले जाना
ज़माने से बेख़बर
मन के धागे खोलकर
पतंग की तरह
उड़ते ही जाना
आंधियों पर सवार होकर
झुलसाती धूप में तप कर
सहराओं, दरियाओं को पार कर
अनदेखे लक्ष्य में समा जाना
न सुनना, न कहना
मन की ही करना
सपनों की गोद में
धीरे से सिर टिकाना
बादलों पर पांव रखकर
ऊंची छलांग लगाना
तारों की सीढ़ी बनाकर
चांद तक पहुंचना
दूर किसी बर्फीली चोटी पर
अपने रूखे हाथों से
ऊंचे देवदारों को सहलाना
गुनगुना कर लोरी सुनाना
कभी थोड़ा अकड़ कर
नकली रुआब दिखाना
फिर कभी झट से
मान भी जाना
इस सफर से थक कर
बहुत चूर होकर
यादों का सिरहाना लिए
मां के आंचल में सो जाना
बहुत मुश्किल है...
कोई राह चुनना...
हे! तथागत
क्यों मुश्किल है?
हे! तथागत
तुम जैसा जीवन पाना
राज-पाट सब छोड़ा तुमने
सत्य जगत का तब जाना
है संसार में पीड़ा कितनी
कष्ट झेल कर पहचाना
जीवन-मरण से ऊपर उठ कर
भेद ये जीवन का जाना
किंतु, तथागत क्यों मुश्किल है
तुम जैसा जीवन पाना
सत्य-अहिंसा, प्रेम मंत्र को
घर-घर तुमने पहुंचाया
ज्ञान में थी ऐसी शीतलता
जैसे बोधि वृक्ष की छाया
शांति मार्ग पर चलकर तुमने
कितनों को रस्ता दिखलाया
हे! तथागत क्यों मुश्किल है?
तुम जैसा जीवन पाना
इक विपदा ने खोल दिया अब
इन सारे प्रश्नों का भेद
ज्ञान छिपा है इसमें ऐसा
मानो जैसे चारों वेद
हे! तथागत बहुत ही मुश्किल
तुम जैसा जीवन पाना
Monday, May 10, 2021
मंज़र
सब बदहवास
चेहरे उदास
आंखों में आस
जीवन में त्रास
इन्सां का मंज़र
यही आज कल
एंबुलेंस का शोर
मनहूस भोर
मातम हर ओर
ना सूझे छोर
शहर का मंज़र
यही आज कल
दहशत का साया
अपना-पराया
निर्बल सी काया
बेकार माया
घर-घर का मंज़र
यही आज कल
चीख-ओ-पुकार
सबसे गुहार
बेबस लाचार
सिस्टम बीमार
दवाखाने का मंज़र
यही आज कल
Monday, February 22, 2021
मुर्दों का गांव
ये तो अच्छा हुआ कबीरा
जो तुम जहां से चले गए,
कहा था तुमने इस दुनिया को
इक मुर्दों का गांव
ऐसा गांव जहां पर आखिर
इक दिन सबको मरना है
राजा-परजा, बैद और रोगी
पीर-पैगंबर ज़िंदा जोगी
सबको आखिर चलना है
लेकिन वो कुछ और समय था
जिस्म मरा करते थे केवल
रूहें अमर रहा करती थीं
अब ये गांव बदल चुका है
जिस्म नहीं अब यहां पे मरते
उनके बुत बन जाते हैं
जैसे ज़िंदा लाशें हैं
रूहें जिस्म से पहले मरतीं
जिस्म से पहले मरे ज़ुबां
ये मुर्दों का गांव कबीरा
ये मुर्दों का गांव...
Thursday, February 4, 2021
सवाल की मौत
मौत से पहले का मातम
बहुत भयावह है।
मौत अभी दरवाज़े पर है,
झांक रही है अंदर,
सुन रही है रुदन,
ढूंढ़ रही है लाश,
लेकिन लाश लापता है।
चर्चा यह है कि...
इक सवाल की मौत हुई है,
भरी जवानी में।
सवाल भी ऐसा ...
जो अभी पूछा जाना था,
किसी महफ़िल में,
किसी चौपाल में,
किसी अख़बार में।
लेकिन इससे पहले कि ये...
आता किसी की ज़ुबान पर
हो गई अकाल मृत्यु
जवाब से पहले का मातम
बहुत भयावह है।