ये तो अच्छा हुआ कबीरा
जो तुम जहां से चले गए,
कहा था तुमने इस दुनिया को
इक मुर्दों का गांव
ऐसा गांव जहां पर आखिर
इक दिन सबको मरना है
राजा-परजा, बैद और रोगी
पीर-पैगंबर ज़िंदा जोगी
सबको आखिर चलना है
लेकिन वो कुछ और समय था
जिस्म मरा करते थे केवल
रूहें अमर रहा करती थीं
अब ये गांव बदल चुका है
जिस्म नहीं अब यहां पे मरते
उनके बुत बन जाते हैं
जैसे ज़िंदा लाशें हैं
रूहें जिस्म से पहले मरतीं
जिस्म से पहले मरे ज़ुबां
ये मुर्दों का गांव कबीरा
ये मुर्दों का गांव...
बहुत उम्दा
ReplyDeletethanks shivali ji
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteDeep thought
ReplyDeleteबढ़िया
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