Monday, February 22, 2021

मुर्दों का गांव

ये तो अच्छा हुआ कबीरा
जो तुम जहां से चले गए,
कहा था तुमने इस दुनिया को
इक मुर्दों का गांव
ऐसा गांव जहां पर आखिर
इक दिन सबको मरना है
राजा-परजा, बैद और रोगी
पीर-पैगंबर ज़िंदा जोगी
सबको आखिर चलना है
लेकिन वो कुछ और समय था
जिस्म मरा करते थे केवल
रूहें अमर रहा करती थीं
अब ये गांव बदल चुका है
जिस्म नहीं अब यहां पे मरते
उनके बुत बन जाते हैं
जैसे ज़िंदा लाशें हैं
रूहें जिस्म से पहले मरतीं
जिस्म से पहले मरे ज़ुबां
ये मुर्दों का गांव कबीरा
ये मुर्दों का गांव...

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