Saturday, May 26, 2018

मुलाकात

सोचा था होगी बात तो कुछ बात करेंगे
हो यादगार ऐसी मुलाकात करेंगे
इस डर से मगर हम न कोई बात कर सके
बिगड़ी जो अगर बात तो क्या बात करेंगे

नज़रों के इशारों में ही वो दिल को पढ़ गए
पलभर में कई नश्तर सीने में गढ़ गए
समंदर कोई यादों का आंखों में उमड़ आया
बिना खोले ही वो खत का मेरे मजमून पढ़ गए

शिकवे-शिकायतों का न मौका कोई मिला
दिल ही में रह गया जो मेरे दिल का था  गिला
धीरे से मेरी पलकों ने कुछ उनसे बात की
ऐसा था इक सवाल कि जवाब न मिला

मुद्दतों मिले मगर असर न कुछ हुआ
अजीब शय है दिल जो किसी का नहीं हुआ
वो शाम मुलाकात की नासूर बन गई
और इस तरह किस्सा-ए-मोहब्बत ख़त्म हुआ

Wednesday, May 23, 2018

पैरहन

झुलसी हुई यादों का अनमोल खज़ाना है
बाज़ार-ए-मोहब्बत में लुटने से बचाना है

बर्बाद-ए-गुलिस्तां में लौटेंगी बहारें भी
आबाद उसे करने को फूल खिलाना है

दरिया-ए-मोहब्बत में अश्कों की रवानी है
इक पल को जो रोना है, इक पल को हंसाना है

जिस पैरहन के सदके तुमको गुमां बहुत है
उस पैरहन को इक दिन यूं छोड़ के जाना है

महलों में सो रहे हैं मौकापरस्त सारे
मेहनतकशों का कोई न ठौर ठिकाना है

नफरत भरी है दिल में, आंखों में आग सी है
चेहरे की मुस्कराहट बस एक बहाना है

ये खुशामदी की बातें ये दौर-ए-बुतपरस्ती
इंसान की फ़ितरत से वाकिफ़ ये ज़माना है