Saturday, May 23, 2015

सलीब

आखिर अरुणा मर गई
और जाग गई हमारी करुणा
बयालिस साल बाद
कानून की दुहाई देते रह गए
कानून के रक्षक
और भक्षक आज़ाद हो गए
हम देखते रहे तमाशा
और हताशा फैलती रही
उन पथराई आंखों में
जिंदगी मरती रही तिल-तिल
इक उजाड़ बिस्तर पर
हम कनस्तर पीटते रहे कानून का
आज नहीं मरी अरुणा
वो तो मर गई थी बयालिस साल पहले
आज तो बस उतारी है
सलीब से...

Wednesday, May 13, 2015

अलविदा मैराज़

इक दिन अचानक
आ गया शाही फरमान
छोड़ कर चले जाओ यह जमीं
ये रस्ते, ये गलियां, ये घर
छोड़ कर चले जाओ ये पीपल
ये खेतों की मेढ़ें, ये पनघट
छोड़ कर चले जाओ स्कूल की घंटी
मस्जिद की अजान, टेंपो की डुग-डुग
छोड़ कर चले जाओ मेले की फिरकी
रंग-बिरंगी टॉफियां और लट्टू का खेल
छोड़ कर चले जाओ वो चुहलबाजियां
वो अल्हड़ गप्पें, वो बेबाक ठहाके
छोड़ कर चले जाओ अब्बा की ऐनक
अम्मी की साड़ी, भाई की किताबें,
बहन के गानों की कैसेट भी
छोड़ कर चले जाओ पकती हुई फसलों की खुशबू
चक्की की खर्र-खर्र, आंगन में सूखती आम की डलियां
... और मैं चला भी गया
पानी से घिरे टापू पर
फिर भी रहा प्यासा हमेशा
ख़ुश्क जैसे रेत सा
बिखरता भी रहा रेत की ही तरह
बरसों खींचता रहा लकीरें
बंजर जमीन की पेशानी पर
फिर इक दिन एक हवा के झोंके ने
ला पटका उसी जमीन पर
चंद रोज़ लगे, घुलने में, बहने में
फिल घुल ही गया आखिर उसी नम मिट्टी में
जहां से फेंका था तुमने
... आज मेरी कब्र खोद कर देखो
पिंजर बन चुकीं मेरी मुट्ठियों में
अब भी कैद है थोड़ी सी मिट्टी!!!

Monday, May 4, 2015

अंतर्मन

1222 1222 1222
करोगे जो कभी बातें फिज़ाओं से
मिटेंगी दूरियां दिल की खलाओं से

गरजने का अगर हो डर मिटाना तो
कभी दिल खोल कर मिलना घटाओं से

अकड़ना भी बहुत अच्छा नहीं होता
शजर भी टूट जाते हैं हवाओं से

ख़ुदा के सामने सजदा नहीं करते
मगर कुछ काम बनते हैं दुआओं से

मुहब्बत क्यों खुदाया सुकूं नहीं देती
कभी पूछो हसीनों से बलाओं से