Monday, May 4, 2015

अंतर्मन

1222 1222 1222
करोगे जो कभी बातें फिज़ाओं से
मिटेंगी दूरियां दिल की खलाओं से

गरजने का अगर हो डर मिटाना तो
कभी दिल खोल कर मिलना घटाओं से

अकड़ना भी बहुत अच्छा नहीं होता
शजर भी टूट जाते हैं हवाओं से

ख़ुदा के सामने सजदा नहीं करते
मगर कुछ काम बनते हैं दुआओं से

मुहब्बत क्यों खुदाया सुकूं नहीं देती
कभी पूछो हसीनों से बलाओं से

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