Saturday, May 23, 2015

सलीब

आखिर अरुणा मर गई
और जाग गई हमारी करुणा
बयालिस साल बाद
कानून की दुहाई देते रह गए
कानून के रक्षक
और भक्षक आज़ाद हो गए
हम देखते रहे तमाशा
और हताशा फैलती रही
उन पथराई आंखों में
जिंदगी मरती रही तिल-तिल
इक उजाड़ बिस्तर पर
हम कनस्तर पीटते रहे कानून का
आज नहीं मरी अरुणा
वो तो मर गई थी बयालिस साल पहले
आज तो बस उतारी है
सलीब से...

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