Friday, July 8, 2016

ख़्वाब-3

तितलियों से ख़्वाब हैं
रंग-बिरंगे से
थोड़े नाज़ुक, थोड़े चंचल
हवा के थपेड़ों से भटक जाते हैं
मगर आंखों में तैरते रहते हैँ...
चटख रंग लिए
कभी उड़ जाते हैं मीलों
खुले गगन में
अपनी पहुंच से भी कहीं दूर
फिर नीला नहीं रह जाता यह आसमान
भर जाता है अनगिनत रंगों से
कभी फूलों पर मंडराते हैं
मोह पाल बैठ जाते हैं ज़िन्दगी का
पर फूलों सी कहां होती है ज़िन्दगी
फिर भी हर फूल का रस पीते हैं ख़्वाब
तितलियों से ख़्वाब
थोड़े नाज़ुक थोड़े चंचल।

लोग

कैसे हैं ये लोग
सूखी शाख़ों पर सजे-धजे लोग
बात-बात पे अंगुलियां उठाते लोग
बेवजह घूरते-डराते लोग
कभी रास्ता रोकते, कभी धकियाते लोग
मचान पे चढ़ कर कंदीलें बुझाते लोग
बरसाती नागफनी जैसे उगे लोग
छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाते लोग
बिना जड़ों के उथले से लोग
फूहड़ से जुमलों पर खिखियाते लोग
हौसला गिराते, साजिशें बुनते लोग
रूढ़ियों से बंधे लोग
कितने कमज़ोर हैं ये लोग
खोखले और बेग़ैरत से लोग...