Monday, October 19, 2015

मैं

खुद से अपना आप भिड़ा दूं, तो समझूं कि मैं हूं
समझौतों की दीवार गिरा दूं, तो समझूं कि मैं हूं
कांटों से भरी राह है मेरी मंजिल की जानिब
इस राह पे चल के दिखा दूं, तो समझूं कि मैं हूं
ठुकराए जो भी रिश्ते, खुदगर्ज़ होके मैंने
उन रिश्तों का कर्ज़ चुका दूं, तो समझूं कि मैं हूं
नहरों से उगार्इं हैं, लहलहाती हुई फसलें
बंजर में सोना उगा दूं, तो समझूं कि मैं हूं
घबरा गया मैं देखो, ज़माने की तोहमतों से
इन फिकरों पे मुस्कुरा दूं, तो समझूं कि मैं हूं
ख़ामोश सहे-देखे, सौ सितम ज़माने के
अब जुबां से आग लगा दूं, तो समझूं कि मैं हूं
खुद के लिए खाए-जिए, रहे अलमस्त से
भूखे को भरपेट खिला दूं, तो समझूं कि मैं हूं
होठों से लगाई हैं, फूलों की तितलियां भी
कांटे गले लगा लूं, तो समझूं कि मैं हूं
मुश्किल नहीं है बिल्कुल, दुश्मन बनाना लेकिन
कुछ यार बना लूं, तो समझूं कि मैं हूं
मझधार छोड़ जाना आसां बहुत है शायद
ये साथ निभा लूं, तो समझूं कि मैं हूं

Tuesday, October 6, 2015

जीत हार

ज़ार ज़ार रोया, मैं बार-बार रोया
अपनी ही मौत पे, हज़ार बार रोया
बेमौत मर रहा था, मुफ़लिसी में जीकर
चौखट पे अमीरों की, सिर मार-मार रोया
बेरंग ज़िंदगी में, मज़हब ने रंग डाले
लहू का ज़र्रा-ज़र्रा फिर तार-तार रोया
मिलने को ज़िंदगी से, लहरों की तरह उमड़ा
नदी के साहिलों सा, आर-पार रोया
मंज़िल की दौड़ में थे, मौकापरस्त सारे
जीती हुई बाज़ी, मैं हार-हार रोया

Monday, October 5, 2015

पिंजरे के पंछी

पिंजरे के पंछी उड़ जा रे
ज़ंजीरें पिघला उड़ जा रे
हो जा हवा पे सवार
बनके बादलों का यार
नीले आसमां में दूर
हो के मस्तियों में चूर
अनजानी राह में मुड़ जा रे
पिंजरे के पंछी उड़ जा रे...

बाहें खोलेगा समंदर
जाना लहरों के अंदर
रेत पे फिसल न जाना
मिलेगा तुम्हें भी ठिकाना
मिट्टी से जा के जुड़ जा रे
पिंजरे के पंछी उड़ जा रे...

जंगल घनघोर अंधेरा
लेकिन होगा सवेरा
आशा की ओस बिछेगी
गहरी ये धुंध छंटेगी
धूप में घुल के उड़ जा रे
पिंजरे के पंछी उड़ जा रे...

ज़िंदगी में पाया जो भी
तेरे हिस्से आया जो भी
उसी को बना के अपना
आंखों में सजा के सपना
सुब्हो की नींद सा उड़ जा रे
पिंजरे के पंछी उड़ जा रे...