Monday, October 5, 2015

पिंजरे के पंछी

पिंजरे के पंछी उड़ जा रे
ज़ंजीरें पिघला उड़ जा रे
हो जा हवा पे सवार
बनके बादलों का यार
नीले आसमां में दूर
हो के मस्तियों में चूर
अनजानी राह में मुड़ जा रे
पिंजरे के पंछी उड़ जा रे...

बाहें खोलेगा समंदर
जाना लहरों के अंदर
रेत पे फिसल न जाना
मिलेगा तुम्हें भी ठिकाना
मिट्टी से जा के जुड़ जा रे
पिंजरे के पंछी उड़ जा रे...

जंगल घनघोर अंधेरा
लेकिन होगा सवेरा
आशा की ओस बिछेगी
गहरी ये धुंध छंटेगी
धूप में घुल के उड़ जा रे
पिंजरे के पंछी उड़ जा रे...

ज़िंदगी में पाया जो भी
तेरे हिस्से आया जो भी
उसी को बना के अपना
आंखों में सजा के सपना
सुब्हो की नींद सा उड़ जा रे
पिंजरे के पंछी उड़ जा रे...

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