Thursday, October 20, 2016

रास्ते

रास्ते खो गए हैं राहों में
मंज़िलें ना मिलेंगी अब हमको
कोई उम्मीद क्यों भला छोड़ें..

ज़िंदगी दे रही है आवाज़ें
आओ सुन लें कि कोई बात बने
कोई उलझन सुलझ सके शायद..

आईने टूट गए हैं घर के
अपना चेहरा भी नहीं दिखता यहां
एक साथी था वो भी रूठ गया.
.