चुपचाप, ख़ामोश सा
सब के जन्मदिन से बिल्कुल अलग
सुबह-सुबह कोई नहीं उठा
न आंगन में लिपाई हुई
न पूजा की थाली सजी
हलवे के लिए बादाम भिगोने थे रात में
लेकिन याद ही नहीं रहा किसी को
मीलों दूर से बस एक फोन आया
कैसी हो मां...?
कुछ खास नहीं बनाया इस बार?
जवाब मिला- तुम आओगे
तो बनाऊंगी कुछ...
मां के चेहरे की मुस्कान
मुझे मीलों दूर से साफ दिख गई
हमेशा की तरह... शफ़्फ़ाक!!!