Sunday, February 15, 2015

हमसफर

विधा गीतिका
समान्त/काफ़िया अर
पदांत/रदीफ़ लिया
मापनी/बहर
212 212 212 212
याद को आपने कैद सा कर लिया
था हसीं ख़्वाब जो आंख में भर लिया
ख़ाक में मिल गर्इं रौनकें वो सभी
जो भी' था पास वो आपने हर लिया
रूह को मिल सकी न कभी धूप ही
छांव ने भी मगर जिस्म का घर लिया
दिल कहीं था मे'रा, होश था पर कहीं
आंसुओं में दबा दर्द था तर लिया
थी नहीं बारिशों में नमी इन दिनों
आसमां टूटकर जो गिरा मर लिया
राह में जो मिले हमसफर बन गए
आपने क्यों मगर मुंह उधर कर लिया

Friday, February 13, 2015

कसौटी

वक़्त जो छोड़ आए पीछे
उखड़ते कदमों के साथ
लौट नहीं पाएगा
जानता हूं
कितना कुछ सिखाया इसने
अच्छा भी, बुरा भी
कितना अच्छा सीख पाया मैं
अपनी ही कसौटी पर
कितना खरा उतर पाया
और दूसरों की???
शायद, पता नहीं!!

धुंधलका

मेरे हिस्से का सूरज
मेरे हिस्से के तारे
गीली बारिश की ख़ुश्की
कुछ ढहती सी बोझल दीवारें
छू लेता था हाथ लगाकर
पकड़ नहीं पाया लेकिन
अब तो और भी दूर लगता है सब
क्या पकड़ पाऊंगा
जैसे छू लेता था पहले
या खुल जाएगी आंख अचानक
और हाथ लगेगी मायूसी और
इक फटेहाल चद्दर!!

ख़्वाब

कब आओगे रूठे ख़्वाब
कब आओगे झूठे ख़्वाब
आंख उनींदी तुमको ढूंढे
कब आओगे टूटे ख़्वाब
दिल में मेरे चुभता हरदम
जिसने मुझसे लूटे ख़्वाब
गीली पलकें, गीले अरमां
फिर भी सूखे-सूखे ख़्वाब
अश्कों से भी ख़लिश मिटे ना
निकले रूखे-रूखे ख़्वाब
वक़्त का पहिया ऐसे घूमा
कितने पीछे छूटे ख़्वाब
आस जगी जब तुमको देखा
फिर से दिल में फूटे ख़्वाब
कब आओगे???
कब???