Saturday, July 28, 2018

पश्चाताप

तेरा कोई पश्चाताप नहीं
लाशों के ढेर पर खड़ा करबद्ध
क्षमा मांग रहा रोती रूहों से
क्योंकि अब नींद नहीं आती
तेरा कोई अधिकार नहीं
तेरा कोई पश्चाताप नहीं
तेरे अट्टहास के सामने
मंद पड़ गया हर रुदन
मंद पड़ गई हर चीत्कार
भुजाओं की ताक़त के नशे में चूर
अब चूर चूर हुआ तेरा गुरूर
तेरा कोई सत्कार नहीं
तेरा कोई पश्चाताप नहीं

मुद्दत

हुई मुद्दत कि आंखों ने वो बरसातें नहीं देखीं
भीगी सुबहें नहीं देखीं, गीली रातें नहीं देखीं
किताबों के नशे से चूर हो जाती थीं जब आंखें
ऐसी नींदें नहीं देखीं, ऐसी रातें नहीं देखीं
आंगन में बहा करती कभी जो नाव पत्तों की
ऐसा बचपन नहीं देखा, ऐसी बातें नहीं देखीं
पढ़ाई के बहाने से सजा करती थी जो महफ़िल
ऐसे मजमे नहीं देखे, मुलाकातें नहीं देखीं

Friday, July 27, 2018

गुनाह

मुझको मेरा गुनाह बता
हर सुबह खौफ़ भरी
हर रात भयानक स्याह
दिन की रोशनी में तपिश
शाम बदरंग, धूसर जैसी
रिश्तों का क़त्ल रोज़ देखता
अपनी नन्हीं सी आंखों से
ज़िंदगी कैद थी जैसे हाथों में
कंचों से भरी मुट्ठी भींच लेता
और वो बिखर जाते लम्हों की तरह
समेटने की कोशिश में अक्सर
छिल जाती कुहनियां
अब भी हैं गहरे निशां
मुझको मेरा गुनाह बता

गहरे सायों में चलता छिप छिप कर
तुझसे मांगा करता क़तरा क़तरा धूप
मां की रुआंसी आंखों में
सुनाई देते क्रूर प्रहसन
पिता के निश्छल समर्पण पर
वो बिखेरते कुटिल मुस्कान
बेदम पिंडलियों पर बढ़ता बोझ
और रास्ते पर भट्ठी की गर्म राख
झुलसे हुए पांवों में
अब भी हैं निशां
मुझको मेरा गुनाह बता।