Saturday, July 28, 2018

मुद्दत

हुई मुद्दत कि आंखों ने वो बरसातें नहीं देखीं
भीगी सुबहें नहीं देखीं, गीली रातें नहीं देखीं
किताबों के नशे से चूर हो जाती थीं जब आंखें
ऐसी नींदें नहीं देखीं, ऐसी रातें नहीं देखीं
आंगन में बहा करती कभी जो नाव पत्तों की
ऐसा बचपन नहीं देखा, ऐसी बातें नहीं देखीं
पढ़ाई के बहाने से सजा करती थी जो महफ़िल
ऐसे मजमे नहीं देखे, मुलाकातें नहीं देखीं

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