Wednesday, February 5, 2020

इम्तिहां

आज ख़ामोश सी है ज़ुबां क्यों मगर
बढ़ रहे फासले दरमियां क्यों मगर

ये शजर छांव देते नहीं आजकल
धूप है ले रही इम्तिहां क्यों मगर

इक चमन था बनाया बड़े शौक से
उस चमन का नहीं बागबां क्यों मगर

नाव मझधार में है फंसी फिर कहीं
है हवा से ख़फा बादबां क्यों मगर

राज़ थे राज़ हैं राज़ ही रह गए
राज़ ही हो गए राज़दां क्यों मगर

आग ही आग है नफरतों की यहां
हर तरफ है यहां बस धुआं क्यों मगर

थे निगहबान जो सरज़मीं के कभी
आज बनते नहीं पासबां क्यों मगर