Tuesday, June 11, 2019

अलीगढ़ दुष्कर्म व हत्याकांड पर...

दे अगर जो ज़िंदगी, फिर बेकसी ऐसी न दे
मौत से हो सामना तो बेबसी ऐसी न दे

है अगर रोना हमारी किस्मतों में लिख दिया
जालिमों की ज़िंदगी में भी हंसी ऐसी न दे

देर से आए 'मसीहा', आबरू न बच सकी
दिल अगर जो दे ख़ुदा तो बेहिसी ऐसी न दे

लाश पर भी लोग करने वो सियासत आ गए
भेड़ियों की आंख में तौबा ख़ुशी ऐसी न दे