Tuesday, December 18, 2018

हाइकु: जीवन

मेरा जीवन
मेरे सारे सपने
तुम ही तो हो

गिरावट

सुबह दिल्ली से आदेश आया
गिर जाओ, गिरा दो
गिर जाओ, गिरा दो
लोग सच में बहुत गिर गए
शाम होते-होते लोगों ने गिरजा गिरा दिया।




Saturday, December 15, 2018

राम तेरे शहर में

क्यों जीना हुआ हराम राम तेरे शहर में
सड़कों पे कत्लेआम राम तेरे शहर में

हैं मुट्ठियां कसी हुईं जुबां पे तल्खियां
ना दुआ ना सलाम राम तेरे शहर में

तुलसी, कबीर, ख़ुसरो ख़ामोश हो गए
क्यों पढ़ते नहीं कलाम राम तेरे शहर में

क्यों तेरे घर की ख़ातिर तेरा ही घर गिराया
क्यों मारी गई अवाम राम तेरे शहर में

'रत्ना' ने रटा राम और संत हो गए
वो नाम क्यों बदनाम राम तेरे शहर में



Saturday, December 1, 2018

ख़ल्वत

जो अब है तेरी हालत पहले कभी न थी
आंखों में ऐसी नफ़रत पहले कभी न थी

मजमों में होती अक़सर बातें तेरी मगर
महफ़िल में ऐसी ख़ल्वत पहले कभी न थी

हमसाया होके चलते थे हम कदम-कदम
ये फासलों की फ़ितरत पहले कभी न थी

सूरत में तुम्हारी थी जादूगरी मगर
आंखों में झूठी उल्फ़त पहले कभी न थी

दूरी सी इक थी पहले भी दरमियां मगर
रिश्तों में झूठी क़ुरबत पहले कभी न थी

पतझड़ में जो आया है मौसम बहार का
मेहरबां तो ये क़ुदरत पहले कभी न थी

मस्जिद में मंदिरों में बांटा किए ख़ुदा
मज़हब में ऐसी नीयत पहले कभी न थी

फैले हैं देखो शोले क्यों हर तरफ यहां
घर फूंकने की फुरसत पहले कभी न थी