Saturday, October 22, 2022

शब्द

शब्द गुम हैं
अब नहीं आते ज़ुबां पर
ज़हन में भी नहीं
बहुत ज़ोर देकर
जब सोचता हूं
तो उलझ जाता हूं
फिर उन्हीं शब्दों में
ये कैसी बेबसी है
कैसी लाचारी है
कोई अज्ञात भय हो रहा हावी है
कभी लगता है...
शब्द तो बहुत हैं
शायद, हिम्मत नहीं है
अपने ही शब्दों को
जब रखता हूं सामने
तो डरने लगता हूं
भागता हूं हालात से
कभी लगता है...
शब्द तो बहुत हैं
पर आदत हो गई है
चुप रहने की
चुप कराने वालों के आगे
आत्मसमर्पण करने की
आंखें मूंद लेने की
दमन का यह मूक समर्थन
चुभता है अंदर तक
ज़ुबां ख़ामोश रहती है
क्योंकि शब्द गुम हैं...

Sunday, September 25, 2022

सितारा

छिपा घने बादल में 
जो एक सितारा था

जिसकी एक झलक से
मिटता अंधियारा था

थी उसको इक आस यही
जीवन में इक बार कभी

जब बदल छंट जाएगा
अंधियारा हट जाएगा

उसके उजियारे से सारा
जग उजियारा हो जाएगा

किंतु भाग्य चक्र कुछ ऐसा
जीवन हुआ मरण के जैसा

ग्रहण काल ने ऐसा घेरा
शंकाओं ने डाला डेरा

होने लगी चमक भी धूमिल
जीवन लगने लगा ये बोझिल

किंतु आस रही जीवन में
फूटा अंकुर क्षण भर मन में

जो हार गया मैं इस बादल से
झुलस गया गर दावानल से

कितने जीवन मर जाएंगे
कितने दीपक बुझ जाएंगे

तेज सूर्य सा अंदर भर के
वेग वायु सा संचित करके

उसने बादल को पिघलाया
चमकी श्वेत धवल सी काया

छिपा घने बादल में था जो
चहुंओर चमक रहा था बस वो...
चहुंओर चमक रहा था बस वो...


Monday, May 23, 2022

भीड़तंत्र

भीड़ का न्याय
तराजू से नहीं 
तलवार से होता है
भीड़ बनती है 
भीड़ बनाई जाती है
गढ़ी जाती है
इसे भेड़ बनाकर 
सिर झुका कर 
चलाना ही तंत्र है
भीड़ सवाल नहीं करती
यह शोर करती है 
शोर में दब जाते हैं 
सवाल भी, जवाब भी
यह जब तलवार लेकर
चलती है सड़कों पर
बदहवास लाश सी लगती है
भीड़ सोचती नहीं
बस बढ़ती चली जाती है
अनजान मंजिल की ओर
छद्म से रची हुई दुनिया की तरफ
यह नहीं जानती
इस में कितनी ताकत है
कितनी हिम्मत है
दुनिया बदलने की
लेकिन यह भेड़ बनकर
बढ़ती रहती है लक्ष्यहीन
और इक दिन 
अंधे कुएं में गिरकर 
खामोश हो जाती है
सदा के लिए...

ख़ामोशी

शोर मचाती ख़ामोशी
रोज़ डराती सरगोशी
टूटेगी जाने किस दिन
यह वहशत की मदहोशी
ज़हर बिछी इन सड़कों पर
कब तक यूं चल पाओगे
तलवारों के साए में
किस-किस की जान बचाओगे
इंसां को इंसां न दिखे
छाई कैसी बेहोशी
शोर मचाती ख़ामोशी

Tuesday, May 10, 2022

नफ़रत के सौदागर

सुनो! नफ़रत के सौदागरो
कान खोलकर सुनो 
हवा-पानी में जो घोला है ज़हर तुमने
इक दिन तुम्हारे ही बच्चों का दम घोंटेगा
उस दिन कुछ नहीं होगा तुम्हारे पास 
सिवा इस नफ़रत के, वहशत के 
वह दिन बहुत भयानक होगा
तुम घुटनों के बल झुक कर
रहम की भीख मांग रहे होंगे 
और काल तुम्हें लौटा रहा होगा 
तुम्हारी ही फैलाई नफ़रत 
वह दिन बहुत भयानक होगा 
सुनो! नफ़रत के सौदागरो
कान खोलकर सुनो।।