Saturday, September 28, 2019

अंतर्द्वंद्व: पहले और अब

पहले...
उनकी ऊंची-ऊंची आवाज़ें
चुभा करती थीं कानों में
उनकी फूहड़ सी हंसी
मन को भर देती थी क्रोध से
उनके शक्ति प्रदर्शन से
कभी खून खौला करता था
उनकी अज्ञानता पर
शर्म महसूस हुआ करती थी
उनके झूठ पर
चिल्लाने को मन करता था
उनकी नफ़रत भरी बातें
ज़हर बुझे तीर सी लगती थीं
अब...
उनकी ऊंची ऊंची आवाज़ें
जलसों की शान हैं
उनकी फूहड़ हसीं पर
सब हंसते हैं ठहाके लगाकर
उनके शक्ति प्रदर्शन पर
लोग मर-मिटने को तैयार हैं
उनकी अज्ञानता पर भी
तारीफों के पुल बंधते हैं
उनका झूठ अब झूठ नहीं
इतिहास का पुनर्लेखन है
उनकी नफ़रत भरी बातें
अब एकता का मूल मंत्र हैं
मन अंतर्द्वंद्व से जूझ रहा है
क्या सही है, क्या गलत...!!