शब-ए-ग़म भी आख़िर गुज़र जाएगी
हर तरफ रोशनी ही नज़र आएगी
बादबां कश्तियों के न मोड़ो इधर
ये इधर की हवा है उधर जाएगी
बाद मुद्दत चमन में चली है हवा
मस्त होकर न जाने किधर जाएगी
उड़ रही है जो चिड़िया न पकड़ो उसे
बांध पिंजरे में डाला तो मर जाएगी
मंज़िलें हौसलों की ही मोहताज हैं
ज़िंदगी हौसलों से संवर जाएगी
मौज सागर की है, इससे डरते नहीं
ये साहिल पे आकर बिखर जाएगी
बेटियों सी खफ़ा है ख़ुशी आजकल
बेटियों सा मनाने पे घर आएगी