Friday, February 13, 2015

धुंधलका

मेरे हिस्से का सूरज
मेरे हिस्से के तारे
गीली बारिश की ख़ुश्की
कुछ ढहती सी बोझल दीवारें
छू लेता था हाथ लगाकर
पकड़ नहीं पाया लेकिन
अब तो और भी दूर लगता है सब
क्या पकड़ पाऊंगा
जैसे छू लेता था पहले
या खुल जाएगी आंख अचानक
और हाथ लगेगी मायूसी और
इक फटेहाल चद्दर!!

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