कुछ दंगाई, बलात्कारी
रिहा हो गए... बाइज़्ज़त!!
जश्न मना, ढोल बजा
गले हारों से लद गए
निर्लज्ज चेहरे खिल गए
न्याय की देवी निहारती रही
बेबस होकर यह दृश्य
न्याय के देवता करते रहे कागज़ काले
काली अंधेरी कोठरी में घुट घट रोता रहा इंसाफ
न्याय की यह नई परिभाषा
बहुत भयानक है
बहुत भयानक...
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