कैसे हैं ये लोग
सूखी शाख़ों पर सजे-धजे लोग
बात-बात पे अंगुलियां उठाते लोग
बेवजह घूरते-डराते लोग
कभी रास्ता रोकते, कभी धकियाते लोग
मचान पे चढ़ कर कंदीलें बुझाते लोग
बरसाती नागफनी जैसे उगे लोग
छोटी-छोटी बातों का बतंगड़ बनाते लोग
बिना जड़ों के उथले से लोग
फूहड़ से जुमलों पर खिखियाते लोग
हौसला गिराते, साजिशें बुनते लोग
रूढ़ियों से बंधे लोग
कितने कमज़ोर हैं ये लोग
खोखले और बेग़ैरत से लोग...
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