Saturday, July 10, 2021

राह-2

बहुत मुश्किल है
कोई राह चुनना
उससे भी मुश्किल
उस पर चलने की
हिम्मत जुटाना

पहला कदम बढ़ाना
बिना रुके बढ़ते जाना
न थकना, न पलटना
न झुकना, न लड़खड़ाना

अनजान मंज़िल की ओर
होकर बेपरवाह
आवारा झोंके की तरह
बहते चले जाना

ज़माने से बेख़बर
मन के धागे खोलकर
पतंग की तरह
उड़ते ही जाना

आंधियों पर सवार होकर
झुलसाती धूप में तप कर
सहराओं, दरियाओं को पार कर
अनदेखे लक्ष्य में समा जाना

न सुनना, न कहना
मन की ही करना
सपनों की गोद में
धीरे से सिर टिकाना

बादलों पर पांव रखकर
ऊंची छलांग लगाना
तारों की सीढ़ी बनाकर
चांद तक पहुंचना

दूर किसी बर्फीली चोटी पर
अपने रूखे हाथों से
ऊंचे देवदारों को सहलाना
गुनगुना कर लोरी सुनाना

कभी थोड़ा अकड़ कर
नकली रुआब दिखाना
फिर कभी झट से
मान भी जाना

इस सफर से थक कर
बहुत चूर होकर
यादों का सिरहाना लिए
मां के आंचल में सो जाना

बहुत मुश्किल है...
कोई राह चुनना...

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