बुझ गए चिराग जिनके
उनके दिल से पूछिए
छोड़िए नेता का भाषण
अपने दिल से पूछिए
जब चली थीं गोलियां
तो किसका सीना था वहां
किसकी उजड़ी मांग थी
ये हुक्मरां से पूछिए
कौन ऐसा बाप था
कंधे पे जिसके लाश थी
कैसे रोके थे ये आंसू
मां के दिल से पूछिए
चेहरे पे कितने ज़ख्म थे
हाथों में कितना था लहू
क्या रंग राखी था उस दिन
ये बहन से पूछिए
खामोश थीं किलकारियां
आंगन भी कुछ गुमसुम सा था
गूंजी थीं किसकी सिसकियां
बेटी के दिल से पूछिए।
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