Thursday, January 2, 2020

आवाज़ें

कितनी आवाज़ दबाओगे
कितनी परवाज़ दबाओगे
हम और ज़ोर से बोलेंगे
तुम जितना हमें डराओगे
कितनी आवाज़...

जब-जब भी डराया है तुमने
जब-जब भी दबाया है तुमने
हैं सबक तुम्हें कुछ याद नहीं
आखिर में मुंह की खाओगे
कितनी आवाज़...

मंदिर मस्जिद में बांट दिया
सदियों का रिश्ता काट दिया
अब राम और अल्लाह करते हो
ऊपर क्या मुंह दिखलाओगे
कितनी आवाज़...

जाहिल सी बातें करते हो
बस लट्ठ घुमाते चलते हो
जां हाथ पे लेकर निकले हैं
तुम क्या हम से टकराओगे
कितनी आवाज़...

गुलशन ये बना कुर्बानी से
रंगों से भरी जवानी से
मिट्टी में मिला है खूं सबका
यह रंग मिटा ना पाओगे
कितनी आवाज़...


2 comments:

  1. क्रांतिकारी आंदोलन की आधारशिला और सकारात्मकता

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