धर्म की ध्वजा लिए, जो सबसे आगे चल रहे,
कब से हमको छल रहे, कब से हमको छल रहे।
कब से हमको छल रहे, कब से हमको छल रहे।
चीरहरण हो रहा, और द्रौपदी लाचार है,
कृष्ण कोई आए न, धृतराष्ट्र हाथ मल रहे।
कब से हमको छल रहे-2
कृष्ण कोई आए न, धृतराष्ट्र हाथ मल रहे।
कब से हमको छल रहे-2
जानकी की राह में, फिर अग्निकुंड धर दिए,
राम किंतु क्यों नहीं, अग्निपथ पे चल रहे।
कब से हमको छल रहे-2
राम किंतु क्यों नहीं, अग्निपथ पे चल रहे।
कब से हमको छल रहे-2
कबीर तेरे घाट पर, इक रक्तरंजित लाश है,
राम और रहीम यहां, धू-धू कर जल रहे।
कब से हमको छल रहे-2
राम और रहीम यहां, धू-धू कर जल रहे।
कब से हमको छल रहे-2
अजब सा है धर्मयुद्ध, कौन ईसा-कौन बुद्ध,
नीलकंठ मौन हैं, विषधर घर पल रहे।।
कब से हमको छल रहे-2
नीलकंठ मौन हैं, विषधर घर पल रहे।।
कब से हमको छल रहे-2
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