Sunday, September 14, 2014

तनहाई की मस्ती

ये मजमे ये रौनकें, मुबारक हों तुमको
हमें तनहाई की मस्ती भी रास आ रही है!
लहरों के थपेड़ों से छिटकी थी जो मिट्टी
जकड़ी जो फिर से तो पास आ रही है!
तुम दुनिया की सूरत बदलने चले थे,
हमें भी साथ लेते, वहीं तो खड़े थे!
बहुत हो चुकीं ये आदर्शों की बातें,
हमें सुनते-सुनते उबास आ रही है!
हमें तनहाई की मस्ती...
मेरे फैसले अब मेरे कहां हैं,
तुम्हारे लिए हैं, जैसे हैं जहां हैं!
खुशामदी को कहते हो इज्ज़त अफजाई,
नीम खाकर बोलूं कि मिठास आ रही है!
हमें तनहाई की मस्ती...
यहां से तो बेहतर थी वो जंजीरों की जकड़न,
गहरी-अंधी कोठी में गर्दन की अकड़न!
तेरी रोशन गालियों में भाती नहीं शहनाई,
मेरी मातमपुरसी में भी उजास आ रही है!
हमें तनहाई की मस्ती...
नहीं चाहिए तिलिस्मी खूंटे से बंधी आज़ादी,
नहीं चाहिए... बिल्कुल नहीं...!!!

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