Thursday, December 10, 2015

घर

जब नए मकान बनते हैं
तो पुराने घर टूट जाते हैं
साथ ही टूट जाती है यादों की कड़ी,
वो कड़ी जो पिरो के रखती है घर को,
चार दीवारों को घर नहीं कहते
चंद खिड़कियों का नाम भी घर नहीं होता
कंक्रीट नहीं, रिश्तों की दीवारें होती हैं घरों में
और संवाद के लिए होती हैं खिड़कियां
फर्श पर चौंधियाती रोशनी का नाम भी घर नहीं होता
बिन रोशनी के भी सब साफ़ दिखता है घरों में
दीवारों पर लटकी महंगी तस्वीरों का नाम भी घर नहीं होता
कुछ खुशियों के रंग होते हैं,
जिनसे बनती है घर की मुकम्मल तस्वीर
जब नए मकान बनते हैं तो
दीवारें खड़ी हो जाती हैं घरों के बीच
कमरों की तरह बंट जाते हैं लोग
लेकिन दादी अम्मा का पुराना कमरा किसी के हिस्से नहीं आता
वो तो ढह जाता है पुराने घर के साथ ही
जब नए मकान बनते हैं तो
छत से सटे रोशनदान बड़ी-बड़ी खिड़कियों में बदल जाते हैं
लेकिन फिर भी अंधेरा नहीं मिटता मकानों का
सिर्फ चिकने फर्श का नाम ही घर नहीं होता
गोबर की लिपाई वाले कमरे में मजबूत रहती है पैरों की पकड़
चिकने फर्श पर तो अक्सर फिसल जाते हैं सब,
कमरे में खुदी अंगीठी में होती है अजब सी गर्माहट
मूंगफली का स्वाद भी अलग होता है ड्राइंग रूम में सजे ड्राई फ्रूट से
सिर्फ नरम गद्दों का नाम ही घर नहीं होता
रस्सी से बुनी चारपाई भी काफी होती है थकान मिटने के लिए
काफी होती है धूप में बिछाकर गप्पें लड़ाने के लिए
काफी होती है खट्टे का ज़ायका लेने के लिए
काफी होती है स्वेटर पर नया फूल बनाने के लिए
जब नए मकान बनते हैं तो कुचली जाती हैं आंगन की क्यारियां
जमीन से जुड़े फूल गमलों में सज जाते हैं
लेकिन तरसते रहते हैं हमेशा ज़मीन के लिए
सिर्फ एलईडी के शोर का नाम ही घर नहीं होता
बच्चों की मस्ती और बहनों की ठिठोली भी काफी होती है
चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए
कतरा-कतरा बिखरे लोगों का नाम घर नहीं होता
इसीलिए मकानों से कहीं बेहतर होता है घर
चंद दीवारों का नाम ही घर नहीं होता।

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