Thursday, December 10, 2015

ठंडी बस्तियों की आग

ठंडी बस्तियों में आज किसी ने आग भर दी है
अब ये सुलगेंगी नहीं, भड़क उठेंगी
राख कर देंगी शहर की गंदगी को
और खुद भी हो जाएंगी राख
ठंडी बस्तियों में आज किसी ने आग भर दी है...
शहर बच नहीं पाएगा इन शोलों से
क्योंकि शहर ने ही जलाए हैं
इन बस्तियों के सपने
खुद आबाद होने के लिए
अमलतास के जंगल
बिजली की तारों में झुलस गए
और धुआं तक न निकला
लेकिन आज चिंगारी उठी है एक      
ठंडी बस्तियों में आज किसी ने आग भर दी है...
ये जो शोर सा चुभ रहा है कानों में
ये शोर नहीं है, चीखें हैँ
उन मासूमों की
जिनके हाथ कुचल दिए थे तुमने
और छोड़ दिया था भीख मांगने के लिए
अब ये हाथ और मजबूत हो गए हैं
ठंडी बस्तियों में आज किसी ने आग भर दी है...
यातना देने वाले याचक बन गए हैं
गला घोंटने वाले हाथ प्रार्थना कर रहे हैं
भय दिखने वाली आंखें डरी हुई हैं
रौंदने वाले पांव लड़खड़ा रहे हैं
ठंडी बस्तियों में आज किसी ने आग भर दी है...

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