Thursday, December 10, 2015

चांद

काट कर रखा हो जैसे चांद कोई फर्श पर
घुल रहा हो डली-डली
पिघल रहा हो कतरा-कतरा
ठंडे पहाड़ों से उतर कर
झील में गोते लगा रहा हो जैसे
छींटे उड़ा रहा हो जैसे
तारे बेचैन हैं, हैरान हैं
चांद की ये मस्ती देखकर
कह रहे हों जैसे
अब घर लौट आओ
रात  बहुत हो गई है...

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