Sunday, June 28, 2015

आवाज़

पीठ फेर लेने से क्या होगा?
शब्द तो फिर शब्द हैं
टकरा कर लौट आएंगे
गूंजते रहेंगे तब तक
जब तक एक भी बाकी है
सुनने वाला
दबेंगे नहीं दबाने से
टकरा कर लौट आएंगे..
यूं पीठ फेर लेने से क्या होगा?
सड़क पर चलती लाश का
हाथ पकड़ना होगा
करनी होगी मशान की अगुआई
अंगार फूंकना होगा अंदर तक
आग तो फिर आग है
भड़क उठेगी लपक कर
यूं चिंगारी बुझाने से क्या होगा?
देखना ही होगा वहशत का नाच
अपनी नंगी आंखों से
जुटाना होगा कतरा-कतरा लहू
मक्कारों का लहू बहाने के लिए
हौसला तो फिर हौसला है
निडर होकर दिखाएगा रास्ता
यूं आंखें चुराने से क्या होगा?
जुबां लड़खड़ाएगी कुछ देर
हिम्मत टूटने लगेगी
धराशायी होने लगेंगे सपने
लेकिन गला फाड़कर चिल्लाना होगा
आवाज़ तो फिर आवाज़ है
चीर देगी पहाड़ भी
यूं खामोश रहने से क्या होगा?
चमड़े के बूट तले
रौंद दिए जाएंगे अधिकार
बाल पकड़ कर सड़क पर
इज्ज़त उतारी जाएगी
लेकिन कब तक बने रहोगे पत्थर
पत्थर तो फिर पत्थर है
टूटेगा तो तबाह कर देगा
यूं बुत बने रहने से क्या होगा?

2 comments:

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  2. अजी। कविता है। कहते रहिए

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