Friday, June 5, 2015

पत्थर

पत्थरों से बाहर निकलो
पत्थरों को तोड़ कर
कि ऊब नहीं जाते तुम
यूं पत्थर बने हुए
कभी हड्डियां खोलने को मन नहीं करता ?
या बने रहना चाहते हो पत्थर ही
बेजान से, नि:शब्द
या जानते नहीं कि कुचल सकते हो
रूढ़ियों को मजबूती से
क्योंकि हो पत्थर इसलिए
तुम्हारा बेनूर होता चेहरा
सपाट हो जाएगा इक दिन
फिर मूरत से घिसते-घिसते
बन ही जाओगे सच में पत्थर
कोई नहीं फेरेगा नरम अंगुलियां तुम पर
कभी ज़लज़ले में टूट कर बिखर जाओगे
कोई नहीं पहचान पाएगा तुम्हारा
अस्तित्व और गौरवमयी इतिहास
इसीलिए कहता हूं
पत्थरों से बाहर निकलो
पत्थरों को तोड़ कर।

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