सूरज की तपिश तेज़ है, पर रात भी होगी
धूप की फिर चांदनी से मात भी होगी
दिन रात बरसना तो बादल का फ़न नहीं
बदलेगा जब ये मौसम, बरसात भी होगी
वो वस्ल के लम्हात, भुला नहीं सकता
क्यों बिगड़े थे हालात, बता नहीं सकता
रमज़ान का मौसम है, रोज़ों की फ़िक्र है
जब ईद-ए-मिलाद होगी, मुलाकात भी होगी
खामोशियों के कांच सभी टूट जाएंगे
गिले-शिकवे सारे पीछे छूट जाएंगे
खुशफ़हमियों के पर्दे हटा करके तो देखो
दुश्मनों से दोस्तों सी बात भी होगी।
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