Tuesday, March 31, 2015

ये ‘चॉइस’ का मामला है

दीपिका पादुकोण अपने वीडियो ‘माय चॉइस’ को लेकर एक बार फिर निशाने पर हैं। इस वीडियो में उन्होंने जो संदेश देने की कोशिश की है, उसे
लेकर समाज बंट गया है। इस वीडियो का निर्देशन होमी अदजानिया ने किया है। वीडियो के लिए उन्हें तारीफ मिल रही है, तो कुछ लोग इसकी आलोचना भी कर रहे हैं। इस वीडियो में दीपिका यह कहती हुई दिखती हैं, ‘यह उनका बदन है, तो सोच भी उनकी है और फैसला भी उनका है। कोई औरत किससे शादी करे, किससे यौन संबंध बनाए और किसके बच्चे की मां बनें, यह फैसला उसे ही करना है, किसी दूसरे को नहीं।
एक पक्ष कह रहा है कि वीडियो में सही मुद्दा उठाया गया है, तो दूसरे पक्ष का तर्क है कि यही बातें कोई पुरुष कहे तो?  हमें इसे सही गलत साबित करने के विवाद में न पड़कर इसके मकसद को समझना चाहिए। अगर आप इस बात को समझ पाएं कि आखिर इस वीडियो को बनाने की जरूरत ही क्यों पड़ी, तो आपको जवाब खुद मिल जाएगा। अब जरा सोचिए यह वीडियो पुरुषों को लेकर क्यों नहीं बनाया गया। शायद आप कहेंगे कि पुरुष ज्यादा समझदार हैं और वे ऐसे विषयों का ‘तमाशा’ नहीं बनाना चाहते। लेकिन अब जरा दूसरी तरह से सोचिए। पुरुषों की ‘चॉइस’ पर पाबंदियां ही कहां हैं? बचपन से शुरू हो जाइए। दरअसल, हम इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाते कि हमारा समाज शुरू से ही ‘पुरुष प्रधान’ रहा है। उन्हें कभी अपनी ‘चॉइस’ से समझौता करना ही नहीं पड़ा, जबकि महिलाओं की स्थिति बिल्कुल उलट है। उनकी ‘चॉइस’ हमेशा पुरुषों के अधीन रही है। वो पुरुष चाहे पिता हो, भाई हो, पति हो या कि बॉयफ्रेंड। ये वीडियो इसी छटपटाहट का प्रतीक है। इस बात में कोई संशय नहीं कि वीडियो में जो तर्क दिए गए हैं, वो यदि कोई पुरुष दे, तो हंगामा कई गुना बढ़ जाएगा। शायद सड़कों पर भी उतर आए, लेकिन यह भी सही है कि एक अतिवाद का प्रत्युत्तर दूसरा अतिवाद नहीं हो सकता।
संतुलन ही इसका हल है। मुश्किल यह है कि पुरुष और महिला के बीच का सामाजिक संतुलन आदिकाल से ही इतना बिगड़ चुका है कि इसकी प्रतिक्रिया भी उतनी ही असंतुलित है। एक पुरुष को अपने कपड़े, बाहर आने-जाने, किसी से संबंध बनाने या न बनाने की आजादी महिलाओं की तुलना में कहीं ज्यादा है। जरा सोचिए दुकानों में बैठे-ठाले हम कितनी आसानी से महिलाओं पर कुछ भी टिप्पणी कर देते हैं और किसी को अटपटा तक नहीं लगता। आॅफिस में काम कर रही कलीग के ‘कैरेक्टर’ पर हम कितनी आसानी से अंगुली उठा देते हैं। जब आपने पहली बार जींस पहनी थी, तो घर में बवाल हुआ था क्या? नहीं ही हुआ होगा। सब सामान्य तो है। इसमें बवाल की क्या बात है। और जब आपकी बहन ने पहनी थी तो? आप ही नहीं पूरे परिवार ने भवें तरेर ली होंगी।
दीपिका का यह वीडियो इस बवाल का जवाब है। आप दोस्तों संग पार्टी कर घर देर से आए होंगे। सबको नॉर्मल लगा होगा। और आपकी बहन दफ्तर से भी लेट आई होगी तो बवाल। यह वीडियो इसी बवाल का जवाब है। जवाब नहीं बल्कि गुस्से का फूट पड़ना है। हम सांस्कृतिक पतन के लिए कितनी आसान से पश्चिम को कोस देते हैं। खुद को क्यों नहीं कोसते। पश्चिम में ने ये बंदिशें खत्म की, इसीलिए वहां महिलाएं भारत से ज्यादा सुरक्षित हैं।  दुष्कर्म की दर भी हमसे कई गुना कम है। बात डंडा लेकर कानून थोपने की नहीं, बल्कि ऐसा वातावरण तैयार करने की है, जिसमें सहजता हो। समरसता हो। समानता हो। वरना पुरुषों के एक अतिवाद के जवाब में महिलाओं के अतिवाद के रूप में ऐसे वीडियो आगे भी बनते रहेंगे।

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