Monday, March 23, 2015

बहारों का मौसम

समान्त/काफ़िया आ
पदांत/रदीफ़ रहा है
मापनी/बहर
2122-2122-2122
आज कोई याद फिर से आ रहा है
इक नशा सा इस फिज़ा में छा रहा है
घुल रहीं हैं शोख़ियां सी तब हवा में
कोई’ झोंका इस तरफ जब आ रहा है
दूर तक फैला हुआ है ये समंदर
इक किनारा पास लेकिन आ रहा है
दिल हुआ है इस कदर पागल दिवाना
भूलकर अपना पराया जा रहा है
रहनुमाओं के नशेमन से गुज़रकर
फिर सड़क पर नींद लेने जा रहा है
है जुबां पे दर्द, होंठों पर हंसी भी
गीत अलहड़ गुनगुनाता जा रहा है
था बहारों सा नजारा जब मिले थे
फिर बहारों का ही’ मौसम आ रहा है

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