उसने सबसे पहले
दाहिने पंख पर कील ठोंकी
लेकिन वो उड़ गया
उसने बाएं पंख पर कील ठोंकी
लेकिन वो फिर उड़ गया
उसने दाहिना पंख काट दिया
अब वो फड़फड़ाने लगा
उसने बायां पंख भी काट दिया
अब वो लड़खड़ा कर चलने लगा
कुछ देर चला
और फिर गिर गया
अब उसने पंखों पर मरहम लगाया
सारी कायनात को दिखाया
अपनी दयालुता से सबको मोह लिया
उसका जयघोष होने लगा
फिर उसने...
खुले आसमान में उड़ने वाले को
पंजों पर चलना सिखाया
अपने दरबार में बिठाया
और एलान किया...
इक दिन यूं ही तुम्हें
उड़ना भी सिखा दूंगा
दरबार तालियों से गूंज उठा!!
शानदार।
ReplyDeleteSeems like this poetry is inpsired from the story "Hitler & Hen".
Thanks
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