ये बेड़ियां सी क्यों कसती जा रही हैं चारों ओर?
ये इतना पहरा किसलिए है आखिर?
ये मेरे हाथों को कस कर क्यों बांधा जा रहा है?
इतना कस कर कि कलम भी नहीं पकड़ पा रहा हूं।
क्यों अंधेरी कोठरी में डाला जा रहा है मुझे?
क्यों तेज़ाब से सने पत्थर फेंके जा रहे हैं मेरे घर के शीशों पर?
क्यों ये लश्कर बढ़े चले आ रहे हैं मेरी ओर?
आकाओं के इशारे पर क्यों दनदना रहीं हैं गोलियां?
आस्तीन ऊपर कर क्यों चिल्ला रहे हैं गर्म खून से भरे शोहदे?
क्या इसलिए कि तुम्हारी खोखली परंपराओं को ठोकर मार दी है मैंने?
शिथिल से मेरे शरीर को ख़त्म करने के लिए क्यों इतनी ताक़त झोंक रहे हो?
क्या इसलिए कि तुम घबरा गए हो बुरी तरह एक छिहत्तर साल के बूढ़े से?
और ये शिथिल सा शरीर तुम्हें लगने लगा है इक विशाल शिला सा
या की मेरे लिखे शब्दों के कोलाहल से फटने लगे हैं तुम्हारे कान के परदे?
और भरभरा के गिरता हुआ नज़र आ रहा है तुम्हें अपना अस्तित्व
बंदूकों, तोपोँ से लैस होकर भी लाचार क्यों दिख रहे हो मेरे सामने?
क्यों मिटाने पर तुले हो मेरा नामोनिशां?
क्या इसलिए कि जानते हो की परास्त हो जाओगे मेरे शब्दों से?
ढेर हो जाएंगे तुम्हारे सभी आडंबर
इसलिए मेरी ज़ुबान ही छीन लेना चाहते हो मुझसे
कितने नासमझ हो, इतना भी नहीं जानते?
शब्द मिट नहीं सकते कभी
वो तो तैरते रहते हैं हवाओं में क्रांति गीत बनकर
सदा के लिए।
ये इतना पहरा किसलिए है आखिर?
ये मेरे हाथों को कस कर क्यों बांधा जा रहा है?
इतना कस कर कि कलम भी नहीं पकड़ पा रहा हूं।
क्यों अंधेरी कोठरी में डाला जा रहा है मुझे?
क्यों तेज़ाब से सने पत्थर फेंके जा रहे हैं मेरे घर के शीशों पर?
क्यों ये लश्कर बढ़े चले आ रहे हैं मेरी ओर?
आकाओं के इशारे पर क्यों दनदना रहीं हैं गोलियां?
आस्तीन ऊपर कर क्यों चिल्ला रहे हैं गर्म खून से भरे शोहदे?
क्या इसलिए कि तुम्हारी खोखली परंपराओं को ठोकर मार दी है मैंने?
शिथिल से मेरे शरीर को ख़त्म करने के लिए क्यों इतनी ताक़त झोंक रहे हो?
क्या इसलिए कि तुम घबरा गए हो बुरी तरह एक छिहत्तर साल के बूढ़े से?
और ये शिथिल सा शरीर तुम्हें लगने लगा है इक विशाल शिला सा
या की मेरे लिखे शब्दों के कोलाहल से फटने लगे हैं तुम्हारे कान के परदे?
और भरभरा के गिरता हुआ नज़र आ रहा है तुम्हें अपना अस्तित्व
बंदूकों, तोपोँ से लैस होकर भी लाचार क्यों दिख रहे हो मेरे सामने?
क्यों मिटाने पर तुले हो मेरा नामोनिशां?
क्या इसलिए कि जानते हो की परास्त हो जाओगे मेरे शब्दों से?
ढेर हो जाएंगे तुम्हारे सभी आडंबर
इसलिए मेरी ज़ुबान ही छीन लेना चाहते हो मुझसे
कितने नासमझ हो, इतना भी नहीं जानते?
शब्द मिट नहीं सकते कभी
वो तो तैरते रहते हैं हवाओं में क्रांति गीत बनकर
सदा के लिए।
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