Wednesday, September 2, 2015

उन्मुक्त

छत के सुराख़ से
फर्श पर गिरती रोशनी
पकड़ी है कभी?
घुप्प अंधेरे कमरे में
जैसे चांद से उतर आई हो
कोई सीढ़ी उम्मीद की
कभी कोशिश की है
इस सीढ़ी को पकड़कर
चांद तक पहुंचने की?
उन्मुक्त उड़ जाने की?
बचपन में ताकत नहीं थी
नन्हे हाथों में
जितनी बार भी कोशिश करते
हाथ में कुछ न आता
फर्श पर लेकिन चमकता रहता
एक सफेद गोल चकत्ता
कुछ छोटे छोटे कीट-पतंगे
चढ़ जाते आसानी से उस रोशनी में
और देखते ही देखते आज़ाद घूमते
खुले गगन में
स्लेटों के सुराख़ कितने बड़े लगते थे तब
अब तो बरसों हो गए
उस रोशनी को देखे
भला पक्के मकानों की छत पर भी
सुराख़ होते हैं क्या??

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