Thursday, August 6, 2015

इश्क़ की जादूगरी

ये है इश्क़ की जादूगरी
जादूगरी है ये इश्क़ की
ये ख़ुदा भी है, ये दुआ भी है
ये घटा भी है, ये फिज़ा भी है
ये जुनूं भी है और जां भी है
ये वफ़ा भी है, ये जफ़ा भी है

ये है एक मंजिल पाक़ सी
ये है एक मुट्ठी राख सी
फैले ये जब, कर दे भसम
ये है एक जलती आग सी

ये है इश्क़ की जादूगरी...

शोलों के हैं क़तरे यहां
हैं मौत के खतरे यहां
ना दिन है ना रातें यहां
बेखौफ़ सब बातें यहां

बस धूप है, ना छांव है
मिट्टी में जलते पांव हैं
इस इश्क़ में जीता वही
जिसका चला हर दांव है

ये है इश्क़ की जादूगरी...

रूहों का इक बाज़ार है
जिंदा है पर लाचार है
इक दर्द है, आज़ार है
लुटता हुआ गुलज़ार है

देखो जो ख़्वाब हसीन है
महफिल बहुत रंगीन है
उतरे नशा जब प्यार का
किस्सा बहुत ग़मग़ीन है

ये है इश्क़ की जादूगरी...

मिल जाए तो, खोना नहीं
गुम जाए तो, रोना नहीं
हो बोझ तो ढोना नहीं
और बेवफ़ा होना नहीं

फिर भी कभी जो राह में
सिमटी हुई सी आह में
यादों का झोंका ले उड़े
जलना नहीं उस गाह में

ये है इश्क़ की जादूगरी...

ये इक अजब सा सरूर है
सिर पे चढ़े तो फितूर है
अल्हड़ भी है, मग़रूर है
इस उम्र का ही क़सूर है

रुकता नहीं, रोके कभी
मुड़ता नहीं, मोड़े कभी
हिस्सों में जो बंट जाए तो
जुड़ता नहीं, जोड़े कभी

ये है इश्क़ की जादूगरी...

इसमें बड़ी हैं नज़ाकतें
मासूमियत ओ शराफतें
कुछ मदभरी सी रफाकतें
कुछ शोख़िया व अदावतें

चेहरा कोई भा जाए तो
आंखों में गर छा जाए तो
सुनता नहीं फिर दिल कभी
इक बार ये आ जाए तो

ये है इश्क़ की जादूगरी...

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