Thursday, August 13, 2015

ज़िंदगी


है ज़िंदगी से भी लंबी, हर राह ज़िंदगी की
खुशियों की कोई दस्तक, हर आह ज़िंदगी की

मुश्किल नहीं था रहना, ज़िंदा हमेशा लेकिन
है ज़िंदगी की दुश्मन, ये चाह ज़िंदगी की

अंधियारे हैं रास्ते पर, मायूस तुम न होना
बुझती तो कभी जलती, है दाह ज़िंदगी की

जो कामयाब हो तो, ग़मों को याद रखना
पड़ती है बड़ी महंगी, ये ‘वाह’ ज़िंदगी की

नज़रों से गिरा जो भी, हर बार गिरा फिर वो
संभले को नहीं मिलती, फिर थाह ज़िंदगी की

न मौत ही मिलेगी, मर-मर के जो जिये तो
जीने भी नहीं देगी, ये गाह ज़िंदगी की

जीने का मज़ा है तो, दिल खोल के जीने में
है मौत से भी बद्तर, ये डाह ज़िंदगी की


No comments:

Post a Comment