आज़माइश के कुछ आसमान और हैं
मुश्किलें हैं सफर में बहुत हमसफर
राह-ए-मंजिल में पर निगहबान और हैं
इक गुलिस्तां सजाया था हमने यहां
गुल खिले हैं, मगर बागबान और हैं
उनकी महफिल में हम हो गए अजनबी
बात करते नहीं, मेज़बान और हैं
उनके दर से मैं खाली गया लौट कर
बदले बदले से हैं पासबान और हैं
इस समंदर में हैं सारे भटके हुए
कश्तियों के यहां बादबान और हैं
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