Saturday, June 15, 2024

पथिक

अंगारों पर चलता जाए
बिना रुके जो बढ़ता जाए
घोर भयावह अंधियारे में 
राह नई इक गढ़ता जाए 
पथिक वही है...

तपती-जलती बंजर भू पर 
शूल भरे रस्तों के ऊपर 
मक्कारों के चक्रव्यूह में 
बिना अस्त्र जो लड़ता जाए 
पथिक वही है...

सूरज की किरणों से लड़कर
लहरों का भी वेग कुचलकर
मीलों फैले सहराओं में
आंधी बनकर उड़ता जाए 
पथिक वही है...

मन के मोह-पाश को छोड़ 
जीवन-मरण का बंधन तोड़ 
अनसुलझे इस भवसागर में 
बन संन्यासी बढ़ता जाए 
पथिक वही है...

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