ग़ुलाम जिस्मों से
कहीं ज़्यादा ख़तरनाक होती हैं
ग़ुलाम रूहें
ग़ुलाम दिमागों से
कहीं ज़्यादा भयानक होती हैं
ग़ुलाम रूहें
जिस्मों की ग़ुलामी
ख़त्म हो जाती है
जिस्म ख़त्म होने के बाद
दिमागों की ग़ुलामी
रुक जाती है
धड़कनें रुकने के बाद
लेकिन रूहें हमेशा
ग़ुलाम रहती हैं
क्योंकि वे मरतीं नहीं
वे अनंत काल तक
जिस्मों को ढोती हैं
और इन्हें बनाती चली जाती हैं
और भी ग़ुलाम
ये नस्लों को ग़ुलाम बना देती हैं
ये नहीं पहचानतीं
अच्छे-बुरे का भेद
ये नहीं जानतीं
प्यार और नफ़रत का खेल
इन्हें ओढ़ कर जिस्म भी
बन जाते हैं कठपुतली
और दिमाग़ मशीन
इसलिए ग़ुलाम जिस्मों से
कहीं ज़्यादा ख़तरनाक होती हैं
ग़ुलाम रूहें...
बढ़िया रचना
ReplyDeleteलाजवाब और गहराई को समेटे हुए जिसे कोई विरला ही आत्मसात कर सकता है।
ReplyDeleteधन्यवाद जी
Delete