Tuesday, January 12, 2016

इम्तिहां

ज़िन्दगी के अभी इम्तिहां हैं बहुत
हौसलों के मगर आसमां हैं बहुत

क्या हुआ जो हवा ने बदल दी दिशा
कश्तियों के लिए बादबां हैं बहुत

आंधियों से चमन जो उजड़ था गया
उस चमन के लिए बागबां हैं बहुत

सरहदों पे कहीं हैं चलीं गोलियां
इस वतन के यहां पासबां हैं बहुत

क्या हुआ जो सितारा गिरा टूटकर
इस फ़लक में मगर कहकशां हैं बहुत

धूप खिलती नहीं इस शहर में कहीं
गांव सबके मगर खुशनुमा हैं बहुत

आदमी आदमी से परेशान है
मतलबी हैं बड़े खुदनुमा हैं बहुत

हर किसी से शिकायत व शिकवे मगर
दूसरों के लिए बेज़ुबां हैं बहुत

दूरियां पाटने मैं चला कुछ कदम
फासले ये मगर दरमियां हैं बहुत

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