जो राह चुनी न मैंने, वो राह नहीं लौटेगी अब
जो बीत गया है सावन, बरसात नहीं लौटेगी अब
खिलने के जब मौसम आए, फूल फिज़ा में मुरझाए
अब चाहे बसंत बुला लो, बहार नहीं लौटेगी अब
दिल से थे आज़ाद मगर, पिंजरों में थे अपने घर
पिंजरे अब वो तोड़ भी डालो, परवाज़ नहीं लौटेगी अब
हाथों से यूं फिसला पल, नहीं मिला फिर पिछला कल
वक्त के पहिए मोड़ भी डालो, रफ्तार नहीं लौटेगी अब
मिट्टी में थे बोए सपने, जिनकी ख़ातिर खोए अपने
जितनी गहरी नींद सुला लो, वो रात नहीं लौटेगी अब
यारों संग जब महफिल होती, बात सनम संगदिल की होती
महलों में अब जाम पिला लो, वो बात नहीं लौटेगी अब
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